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Hindi Books Hindi E-Book by Gradias Hindi Paperback by Gradias price_₹160
मीठे ठग

मीठे ठग

Hindi Books Hindi E-Book by Gradias Hindi Paperback by Gradias price_₹160
Short Description:
तीखे लेखों का एक बेहतरीन संग्रह

Product Description

 

  • 160.00
  • by Shadab Salim  (Author)
  • Book: Meethe Thug
  • Paperback: 150 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13:‎ 978-8195983780
  • Product Dimensions: 21.59 x 13.97 x 2 cm

तीखे व्यंग्यों का संग्रह है मीठे ठग 

यह किताब व्यंग्यों की किताब है, सौ छोटे बड़े व्यंग्यों को संग्रहित कर एक जगह रखे जाने का प्रयास लेखक द्वारा किया गया है। मौजूदा समय में समाज में व्याप्त अव्यवस्थाओं को देखकर व्यक्ति व्यथित होता है, यह अव्यवस्था सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक या धार्मिक होती हैं। व्यक्ति इन अव्यवस्थाओं का प्रतिकार करना चाहता है लेकिन बहुत से ऐसे कारण हैं जिनसे वह इनकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाता है और जब ऐसे विचारों की अभिव्यक्ति न हो तब मन क्लेश का घर बन जाता है, यह क्लेश व्यक्ति के भीतर चलता रहता है।


इस किताब में व्यंग्यकार उस ही अभिव्यक्ति को व्यंग्य के माध्यम से समाज के सामने लाने का प्रयास करता है। बात हास्यप्रद होते हुए गहरे संदेश दे जाती है। ऐसे बहुत से विचार हैं जिन्हें कहने से समाज रोकता है किंतु तर्क की कसौटी पर उन विचारों को नकारा नहीं जा सकता, यह व्यंग्य संग्रह ऐसे ही विचारों की एक अटैची है। इस कितना की विशेषता यह है कि किसी भी संदेश को समझने के लिए किसी बड़े पाठ की आवश्यकता नहीं है, इस किताब में कुछ छोटे से चुटकुले नुमा व्यंग्य में ही वह संदेश पूरा हो जाता है जिस संदेश तक लेखक लेकर जाना चाहता है।

इस किताब के सारे व्यंग्य इसके प्रारंभ से लेकर अंत तक पाठक को पूरी तरह बांध कर रखते हैं, इस किताब को जब पाठकों द्वारा पढ़ा जाएगा तब शायद वह अपनी बैठक से बगैर हिले पूरी पढ़कर ही उठेंगे। किसी भी लेखक का यह दायित्व भी होता है कि वह भाषा को उस स्तर तक ले जाने को प्रयास करे जहाँ तक पाठक को पाठ्य सामग्री से अपनत्व की भावना आने लगे, पाठक उस पाठ में रम जाए उसे यह प्रतीत हो कि जो शब्द लेखक द्वारा कहे गए हैं वह शब्द तो उस ही के हैं, इस किताब में लेखक ने अपनी इस ज़िम्मेदारी को पूरी तरह निभाया है, भाषा को उस स्तर पर रखा है जिससे पाठक को व्यंग्य पढ़ते हुए अपने ही विचारों की अनुभूति हो।

इस किताब के व्यंग्यों का लक्ष्य यह है कि उन बातों को समाज के सामने लाए जो किसी दबाव में आजतक अनकही है लेकिन व्यक्ति की पीड़ा उस बात को कहने पर आतुर है, इस किताब को पढ़ते हुए पाठक को शब्दों और संदेशों में अपनत्व की भावना का निर्माण हो। किताब का पाठ कोई बहुत गूढ़ार्थ नहीं है, व्यंग्यों की बात वही है जो हर आदमी अपने रोजमर्रा के जीवन में देखता है लेकिन शब्दों की कमी या लय नहीं होने के कारण अभिव्यक्ति नहीं दे पाता है। किताब अपने सभी लक्ष्यों को पूरा करती है उन लक्ष्यों को जिनके लिए यह व्यंग्य लिखे गए हैं। लेखक कोई बात अपने आसपास के जीवन और आसपास के लोगों के भीतर से ही लाता है इस व्यंग्य संग्रह के व्यंग्यकार द्वारा भी अपने जीवन के अनुभवों से व्यंग्य के मुद्दे लाए गए हैं। हंसी ठिठोली में कोई गहरी बात गहरा असर करती है।

हिंदी में व्यंग्य विधा अधिक पुरानी तो नहीं है किंतु समय समय पर व्यंग्यकारों द्वारा अच्छे व्यंग्य अपने समाज और आसपास के लोगों के आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन पर कहे गए हैं। पाखंड और विसंगतियों के विरुद्ध सबसे अधिक कोई कारगर उपाय है तो वह व्यंग्य ही है, व्यंग्य के ज़रिए कोई बड़ी क्रांति की आशा भले न की जाए किंतु व्यक्तिगत जीवन पर व्यंग्यों के गहरे प्रभाव होते हैं। यह किताब पाठकों को हंसी ठिठोली के साथ सामाजिक विसंगतियों एवं पाखंड पर बेजोड़ प्रहार करती नज़र आएगी जो निश्चित ही कहीं न कहीं कोई प्रश्न पाठकों के भीतर पैदा करेगी।

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