Orka Kaerasta / ओरका केरास्टा - ग्रेडिअस बुक स्टोर
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Hindi Books Hindi E-Book by Gradias Hindi Paperback by Gradias price_₹230
Orka Kaerasta / ओरका केरास्टा

Orka Kaerasta / ओरका केरास्टा

Hindi Books Hindi E-Book by Gradias Hindi Paperback by Gradias price_₹230
Short Description:
एक चाबी और दो शब्दों के सच की खोज की कहानी, जिसके अंत से एक घिनौना राज़ जुड़ा था— क्या था वह राज़?

Product Description

 

  • ₹230.00
  • by Ashfaq Ahmad  (Author)
  • Book: Orka Kaerasta
  • Paperback: 204 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13:  978-81-985336-1-6
  • Product Dimensions: 22 x 14 x 1.5 cm
‘क्राईम फिक्शन विद डेविड फ्रांसिस’ में यह क्रमानुसार चौथा उपन्यास है, भले क्रम में दसवें नंबर का ‘डेढ़ सयानी’ पहले प्रकाशित हुआ हो और अब तक इस सीरीज के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हों— ‘ओरका केरास्टा’ उस वर्तमान डेविड के तैयार होने की प्रक्रिया की चौथी कड़ी है, जिसे लगता है कि अब वह पूरी तरह पक कर एक ऐसा शाहकार हो चुका है कि जिसमें दुनिया भर के जासूसी किरदारों का थोड़ा-थोड़ा अंश मौजूद है।

डेविड के बारे में जैसा कि पहले बताया गया है कि यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है— जिसके पिता आइसलैंड के थे और माँ मुंबई की महाराष्ट्रियन फैमिली से। जिसे बचपन से ही फिक्शनल जासूसी किरदारों से ऐसा मोह था कि वह केबल और मोबाइल के दौर में भी ऐसी किताबें पढ़ता था और फिल्में देखता था। भारत से ले कर विश्व के दूसरे हिस्सों में लिखे गये ऐसे किरदारों को ख़ुद में उतारना चाहता था और इसके लिये उसने अपने पढ़ाई-लिखाई के दौर में ही हर तरह की प्रापर ट्रेनिंग भी ली थी, जो ऐसे किसी जासूस के लिये ज़रूरी होती है।

फिर भी, यह कोई उसका अकेला ख़ब्त नहीं था… वह एक पक्का प्रकृति प्रेमी और यायावर भी था। वह इसी एक जीवन में दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता था। उसका एस्थेनिक सेंस इतना ज़बर्दस्त था कि वह वर्स्ट से वर्स्ट कंडीशन में भी एक सौंदर्य ढूंढ लेता था। उसका मानना था कि बुरा या बकवास इंसान के बनाये में हो सकता है। अगर प्रकृति ने कुछ रचा है तो वह अनुपम है— बस उसकी ख़ूबसूरती देखने वाली आँखें होनी चाहिये।

उसका तीसरा शौक था लड़की— उसे अपने आप को संसार का महानतम ठरकी कहने से कोई गुरेज़ नहीं था। उसकी यह विश थी कि वह इसी एक जीवन में इस दुनिया के हर हिस्से में पाई जाने वाली, हर नस्ल की दोशेजा को भोग ले— जो उसके लिये माँ की उम्र की न हो, और बहन या बेटी के खांचे में फिट न हो बैठती हो… लेकिन उसके लिये कनसेंट सर्वोपरि था। सहमति के संसर्ग के सिवा उसकी और किसी तरह के संसर्ग में कोई रूचि नहीं थी।

इन बातों के अतिरिक्त उसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी था कि अपने शौक के मद्देनज़र ‘अनालैसिस’ को प्राथमिकता देते हुए उसने अपने अंदर अपने एक आभासी रूप का विस्तार किया था, जिसे वह ‘मिनी मी’ के रूप में सम्बोधित करता था। यह फीचर न सिर्फ़ अपने आप में विचार-विमर्श करते किसी नतीजे पर पहुंचने के काम आता था— बल्कि इसी आपसी विचार-विमर्श से उसका मनोरंजन भी होता रहता था। उसका यह आभासी रूप लड़की के मामले में उससे एक क़दम आगे था। जो बातें वह ख़ुद शाब्दिक आवरणों में लपेट कर कहता था— ‘मिनी मी’ खुल के कहना पसंद करता था।

‘ओरका केरास्टा’ कहानी है डेविड के अपने पैतृक रिश्तेदारों के पास जाने के दौरान घटी एक अहम घटना की— जो उसकी नज़र में लिखी जाने लायक एक कांड की संज्ञा पा सकी। इस कहानी की पृष्ठभूमि नार्वे है तो जगहों से ले कर बाकी किरदारों के नाम थोड़े अटपटे लग सकते हैं, लेकिन यह नार्वेजियन के हिसाब से हैं— जो कि कहानी को वास्तविकता का पुट देने के लिये ज़रूरी थे।

कहानी की शुरुआत डेविड के अपनी कज़िन के साथ उत्तरी नार्वे की एक बर्फ़ीली जगह पर कैम्पिंग करने से होती है— जहां उसके सामने एक आदमी मौसम का शिकार हो कर मर जाता है और उसके लिये एक चाबी और दो शब्द छोड़ जाता है… ओरका केरास्टा! अब अपनी सहजवृत्ति के चलते उसकी दिलचस्पी इस बात में हो जाती है कि उसे मृतक के जायज़ वारिस तक यह चीज़ें पहुंचा देनी चाहिये— शायद वह उनके लिये बड़े काम का हो। आख़िर मरता हुआ आदमी कुछ खास ही बोलता है।

लेकिन वारिस था कौन और कहां? पता चलता है कि जहां वह मरा, वहां बस एक विजिट पर था और उसका असली ठिकाना ओस्लो में था— तो वहीं वारिस भी थे। अब वारिसों में या तो वह वह बीवी और बच्चा था, जिसमें बीवी अपने पति से नफ़रत करती थी और बच्चा मेंटली चैलेंज्ड था, किसी विरासत को ढोने लायक नहीं था— या फिर एक के बाद एक कर के आठ सामने आने लगे ऐसे लोग थे, जो अपने को मृतक के ‘छोड़े हुए’ का हक़दार बताते थे… लेकिन वे एक दूसरे के दुश्मन थे और जिन्हें एक दूसरे की जान लेने से भी गुरेज़ नहीं था।

डेविड को इतना समझ में आ जाता है कि यह सिलसिला शराफ़त वाला तो नहीं था, बल्कि ऐसा कुछ तो था जो अपराध से जुड़ा हो और यह तो उसकी गिज़ा थी— उसकी रूह की तस्कीन थी। उसकी ज़िंदगी जिन तीन पिलर पर टिकी थी, उनमें से एक पिलर थी। वह दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाने का ख़्वाहा था— अब कुछ अपराधी उसके सामने थे तो वह पीछे कैसे हट सकता था।

भले उसे प्रेरित करने के लिये इस केस में कोई ‘डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ न हो, जो उसकी पहली प्राथमिकता होती थी और जिसके बिना उसकी हालत बाल कटे सैमसन जैसी हो जाती थी। यह उसकी अब तक की ज़िंदगी का पहला ऐसा कांड था, जहां उसने बिना किसी डैमसेल इन डिस्ट्रेस के ही दूसरे के फटे में टांग अड़ाई हो। अपने फटे में टांग अड़ाना और बात थी, जो न्यूयार्क से ले कर अलास्का तक अड़ानी पड़ी थी— जहां से उसके इस हंगामाखेज़ जीवन की शुरुआत हुई थी।

अब जब वह उन लोगों के पीछे पड़ता है तो एक के बाद एक चीज़ें सामने आती जाती हैं— और अंत में एक ख़ुशहाल और सम्पन्न समाज से जुड़े एक वर्ग से जुड़ा एक घिनौना राज़ खुलता है… जहां अपनी-अपनी फैंटेसीज को पूरा करने के पीछे नैतिक-अनैतिक की बाधाएं ही ख़त्म कर दी गई थीं।


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